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प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान गर्भवती महिलाओं के लिए हितकारी

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान गर्भवती महिलाओं के लिए हितकारी

सारंगढ़ बिलाईगढ़ – केंद्र सरकार की कल्याणकारी प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएम एसएमए) की शुरुआत कुछ वर्ष पहले भारत सरकार द्वारा चालू की गई है। इस अभियान का मुख्य उद्वेश्य गर्भावस्था में गर्भ से संबंधित जटिलताओं की चिन्हांकन करना है। गर्भकाल में गर्भवती माताओं की खतरे की पहचान समय पर कर ली जाए एवं गर्भावस्था में ही उसकी उपचार निदान की व्यवस्था हो जाए या सुरक्षित प्रसव कराने की कार्य योजना बन जाए तो मातृमृत्यु एवं शिशु मृत्यु को कम कर सकते हैं। इस अभियान की अंतिम लक्ष्य भी यही है कि गर्भावस्था में या प्रसव के दौरान या फिर प्रसव के 42 दिन बाद की मातृ मृत्यु को कम किया जा सके। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में यही व्यवस्था बनाई गई है कि प्रत्येक गर्भवती माताओं की जांच चिकित्सक द्वारा की जाए। इसकी व्यवस्था सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी है, हो सके तो स्त्रीरोग विशेषज्ञों से जांच हो। शासकीय संस्थाओं में स्त्रीरोग विशेषज्ञों की कमी होने पर निजी चिकित्सको या स्त्रीरोग विशेषज्ञों की सेवाएं लेने का प्रावधान है। यहीं नहीं प्रत्येक गर्भवती माताओं की सोनोग्राफी कराए जाने की प्रावधान है। इसमें निजी स्वास्थ्य संस्थाएं भी योगदान देती है, जिससे गर्भकाल में ही किसी प्रकार की विकार या विकृति का पता लगाया जा सके प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में प्रत्येक गर्भवती माताओं की जांच को सुनिश्चित करने के लिए शासन विशेषकर खतरे वाले माताओं की 3 बार पीएमएसएमए में जांच होने पर गर्भवती माताओं को इंसेंटिव दी जाती है। यही नहीं जो मितानिन इसको लेकर इस अभियान के दिन अस्पताल पहुंचती है, उन्हें इंसेंटिव दी जाती है। प्रत्येक माह में 9 तारीख इस जांच की तिथि निश्चित की गई। साथ ही प्रत्येक माह की 24 भी तय है। इसी कड़ी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सारंगढ़ में भी प्रत्येक माह की 9 तारीख एवं 24 तारीख को यह अभियान नियमित रूप से चलती है। अप्रैल 2024 से अब तक 14 बार यह अभियान इस केंद्र में लगाई गई है जिसमे 740 गर्भवती माताओं की जांच चिकित्सको द्वारा की गई है, जिसमे 97 प्रथम तिमाही के है। 258 द्वितीय तिमाही के है तथा 385 तृतीय तिमाही के हैं। अब तक इस अभियान के अंतर्गत 105 गर्भवती खतरे की श्रेणी में पाई गई है। खतरे की पहचान के लिए गर्भकाल में निम्न बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे 18 वर्ष के पूर्व गर्भवती होना, 37 वर्ष के बाद पहली बार गर्भवती होना, छोटे कद की होना, ज्यादा बच्चे पूर्व में ही होना ,पहले प्रसव में कोई जटिलताओं का होना, पहले प्रसव में अबॉर्शन या स्टिल बर्थ का होना पहले प्रसव ऑपरेशन से हुई होना, गर्भवती माताओं को मिर्गी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड , एचआईवी या सिफलिस का होना, किडनी, या लीवर की बीमारी का होना, हृदय रोग का होना, प्रसव पूर्व रक्त स्राव का होना, गर्भावस्था में बच्चे का उल्टा या तिरछा होना, गर्भावस्था जुड़वा बच्चे का होना गर्भावस्था में खून की कमी का होना, प्रसव के दौरान अत्यधित रक्त स्राव होना, प्रसव समय लंबा होना आदि ऐसे बहुत से लक्षण हैं जिसकी समय पर पहचान किया जाना जरूरी तभी उसकी उपचार निदान की कार्यवाही करने की योजना बनाई जा सकती है। इस अभियान में गर्भवती माताओं के परिजनों को भी जागरूक होना होगा। निजी स्त्रीरोग विशेषज्ञों की सेवाएं नियमित मिलती रहे। गर्भवती माताओं के परिजन चिकित्सकों परामर्श को मानने लगे। जटिल प्रसव चिकित्सकों की मार्गदर्शन में होने लगे तो निश्चित रूप से यह अभियान वरदान साबित होगा और हम मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु को कम कर सकते हैं।

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