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धोबनी में उत्साह के साथ मनाया गया गौरा – गौरी उत्सव

धोबनी में उत्साह के साथ मनाया गया गौरा – गौरी उत्सव

धोबनी – ( सरसीवा ) छत्तीसगढ़ में गौरा गौरी पूजा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। लोक मान्यताओं के अनुसार यह पूजा त्रेतायुग के पौराणिक कथा से प्रेरित है। जिसमें शिव पार्वती विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ था। शिव ,पार्वती विवाह का प्रतीक है। मिट्टी से गौरा गौरी – गौरा की मूर्तियों का निर्माण कर रातभर विवाह के अनुष्ठान किए जाते हैं। और अगले दिन नांदिया या तालाब में उनका विसर्जन किया जाता है।

मिट्टी से बनते हैं शिव – पार्वती की मूर्तियां

गांव के लोग मिलकर गांव के बाहर मिट्टी लेने जाते हैं और इस मिट्टी से शिव पार्वती की मूर्तियां बनाते हैं। गौरी कछुए पर और शिव गौरा बैल पर विराजमान करते हैं। औऱ गौरी – गौरा की झांकी पूरे गाँव में घुमाई जाती है। लोकगीत ,नित्य ,वाद्य यंत्र की धुन पर गौरा की बराती निकालते हैं। गौरी को दुल्हन की तरह सजा कर पूरे विधि विधान से विवाह होता है। गौरा – गौरी के इस पर्व में गंडवा बाजा का विशेष आकर्षण होता है। जिसमें दमाऊ , सींग बाजा ,ढोल , गुदुम , मोहरी , झुमका , डफरी , औऱ ट्रासक बजाए जाते है। लेकिन वर्तमान में ये वाद्य यंत्र लुप्त होते जा रहे है। धोबनी में लम्बे समय के बाद गौरी – गौरा उत्सव होने पर ग्रामीणों में काफी उत्साह देखने को मिला।

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